राह देखते थक गई है आंखे,
साथ छोड़ दिया...
जबाव दे रही है पल्खे,
ना करवावो इतना
इन्तेजार हमसे...
अब एक जिंदगी
जुड़ गई है तुमसे...
बैचैनसा होता है ...
हाल ए दिल बिन तुम्हारे,
अकेले रहे तो ...
कैसे खुद को हम सवारे.
बाहें फैलाकर कर रहे है
कबसे आपका इन्तेजार ,
कभी तो आओगी दौड़कर
और मिट जाएगी दुरी की दिवार. - हर्षद कुंभार
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