वो मोहब्बत धरती की, जो इतनी दूर से लाया था।
ए चाँद, तूझे हमारा विक्रम मिलने आया था।
अनहोनी सी हो गई, जब मिट्टी चूमने झुका था।
थे कुछ मीटर के फासले, अब अनंत काल में रुका था।
पर वादा हैं तूझसे ए चाँद, लौट के फिर से आयेगें।
इस बार सिख के गए हैं, कल इतिहास ज़रूर बनाएँगे। - हर्षद कुंभार
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