ज़ख्म सा लगाता है,
खाली खाली बीता दिन।
कभी कभी दो पंक्तियाँ,
जरासा मरहम बन जाती है.
दर्द नहीं होता कोई,
मगर उदासी छाई रहती है।
पर लिख गया दिल कुछ तो,
जीने की राह मिल जाती है। - हर्षद कुंभार
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